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Writer's pictureDasabhas DrGiriraj Nangia

"siyaram may sab jag jani" "सियाराम मय सब जग जानी "

सियाराम मय सब जग जानी


आज एक वैष्णव मेरे पास आए और कहा प्रभु जी सब जग सियाराम मय है कण-कण में भगवान है मैं तो बड़ा परेशान हो गया । मैंने कहा इसमें परेशान होने की क्या बात है । बोले जब मैं चप्पल पहनता हूं तब मुझे ऐसा लगता है कि चप्पल में राम हैं और मैं उनको पैर लगा रहा हूंऐसे ही कोई और चीज के विषय में मैं बड़ा कंफ्यूज हो जाता हूं । मैंने कहा यह तो बहुत सिंपल सी बात है कि यदि चप्पल में राम हैं तो तुम्हारे पैर में भी तो राम हैं राम ने राम को पैर लगाया तुम बीच में क्यों पड़़ते हो वह एकदम भौंचक्का सा रह गया । मैंने कहा गलती आप यहां करते हो कि चप्पल में तो राम देख रहे हो अपने पैर में राम नहीं देख रहे होजबकि कहा गया है कि कण-कण में भगवान है सियाराम मय सब जग जानी । तो तुम्हारे पैर में भी राम है । राम ने राम को पहना, राम ने राम को मारा, राम ने राम को खाया, राम ने राम को पिया, बात खत्म ।लेकिन ऐसी निष्ठा हो पाना बहुत ही कठिन है यह बहुत अपर् लेवल की बात है । अभी हमारा लेवल ऐसा नहीं है, यदि ऐसा लेवल हमारा हो जाए तो फिर यह संशय नहीं होगा ।इसलिए यदि हम कक्षा 4 के विद्यार्थी हैं । माफ कीजिये हम सोशल मीडिया पर रहने वाले अभी कक्षा 4 तक भी शायद नहीं पहुंचे हैं, अपनी बात कर रहा हूँ ।

सियाराम मय सब जग जानी
सियाराम मय सब जग जानी

तो इंटर की ना तो बुक्स पढ़े, इंटर की ना बातें करें यदि करेंगे तो हाल् ईन वैष्णव जैसा ही होग

यह तो ठाकुर की बड़ी कृपा है कि मेरा तर्क उनको समझ आ गया बहुत उम्मीद थी कि उनको समझ ना आता तो बेचारे कितने बड़े महावाक्य को लेकर भ्रम में थे वैसे भी हमें अपने स्तर का अवश्य ध्यान रखना चाहिए । शास्त्र में श्रीमद् भागवत में रामचरितमानस में शबरी के भी वाक्य हैं, रावण के भी वाक्य हैं, हनुमान के भी वाक्य हैं और केवट की भी वाक्य हैं दशरथ के भी वाक्य हैं किसी के भी वाक्य हैं उनकी स्थिति और अपनी स्थिति को देखकर ही उन वाक्यों का अनुकरण या अनुसरण करना चाहिए । जबाकी साधक के लिए स्पष्ट भक्ति भजन के आदेश हैं उनको पहले पालन करना चाहिए । जो कि हम नहीं करते हैं, महावाक्यों को समझना चाहते हैं ।फिर धीरे-धीरे हो सकता है कि हम महान वाक्यों को भी समझ पाए और उनका अनुसरण कर पाए ।


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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