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"Sansar hi saar" "संसार ही सार"

Writer's picture: Dasabhas DrGiriraj NangiaDasabhas DrGiriraj Nangia

संसार ही सार


इस संसार में अनेक प्रकार के क्लेश हैं रोग हैं । रोगी हैं भोगी हैं । क्रिमनल हैं पापी हैं । तापी हैं । लेकिन इस बात को मत भूलना कि हमारा गोविन्द भी इसी संसार में है हमें दूसरे दूसरे लोगों से नही गोविन्द के प्यारों से वास्ता रखते हुए । गुरु से वास्ता रखते हुए । वैष्णवों से वास्ता रखते हुए गोविन्द के ▶ चरणारविन्द की सेवा तक पहुंचना है

"Sansar hi saar" "संसार  ही सार"
"Sansar hi saar" "संसार ही सार"

ये संसार वास्तव में तो कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति के लिए बनाया था । हमे भी साधन के लिए बनाया था । लेकिन हम स्त्री चरण लोलुप हो गए ।अतः प्रणाम है इस संसार को जिसमे हमारे ठाकुर का धाम वृन्दाबन है ।बरसाना है । संत हैं । सिद्ध हैं । गुरुजन हैं । हम हैं । आप हैं । इसका अपने मतलब का उपयोग करो और बाकी से | विचरेत् असंगः| अनासक्त होकर विचरण करो । असंग रहो । जेसे भीड़ में तुम्हारे साथ बेटी चल रही होती है तो उसका ध्यान रखते हो । दूसरी ओर कोई और चल रहा होता है उसका ध्यान नही रखते हो । ये है असंग ।वो या संसार चलेगा साथ ही । लेकिन उसका संग मत करो । ध्यान मत दो । चलने दो । हमे क्या । ये भाव ।

समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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