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"Sadhu Vaishnav Seva" "​साधु वैष्णव सेवा"

Writer's picture: Dasabhas DrGiriraj NangiaDasabhas DrGiriraj Nangia

​साधु वैष्णव सेवा


2 या 4 या 10 वैष्णवों को घर पर बुला लेना उन्हें खीर पूरी हलवा सब्जी रायता का प्रसाद खिला देना । 50 । 100 रूपय दक्षिणा देना वस्त्र देना । प्रणाम कर लेना । अथवा किसी आश्रम में ही 25 या 50 वैष्णवों की प्रसाद सेवा आदि कर देना और एक मुश्त राशि आश्रम में दे देना बहुत ही अच्छी बात है। बहुत सुंदर है । ऐसा करना ही चाहिए । यह भक्ति अंग के वैष्णव सेवा के अंतर्गत आता है लेकिन साथ ही साथ यदि कोई वैष्णव जन अचानक कष्ट में आ गया वह गृहस्थ है या विरक्त है । और यह हमें पता है कि वह परम वैष्णव है । धाम वासी है । जप करता है। दर्शन करता है सात्विक जीवन जीता है यदि उसे किसी प्रकार का कष्ट हो और हमें लगे कि हमारी सहायता । हमारी सेवा से उसको सांत्वना या आनंद मिल सकता है । तो इससे बड़ी साधु वैष्णव सेवा कोई नहीं । यहां हमारी सेवा की आवश्यकता है । सेवा न करने पर या इग्नोर करने पर वैष्णव को कष्ट हो सकता है या चिंता हो सकती है ।और वहां जो हम साधु वैष्णव की प्रसाद सेवा करते हैं । वहां हमारी कोई जरूरत नहीं है वह एडिशनल है ।


"Sadhu Vaishnav Seva" "​साधु वैष्णव सेवा"
"Sadhu Vaishnav Seva" "​साधु वैष्णव सेवा"

हमने प्रसाद पवा दिया तो ठीक । अन्यथा वह प्रसाद पा तो रहे ही थे । हम न पवाते तो उन्होंने भूखे नही रहना था । लेकिन यहां पर कष्ट में । दुख में किसी की सेवा का अवसर प्राप्त होने पर उसे करना यह एडिशनल नहीं । अपितु चेष्टा शील रहकर ऐसे अवसरों पर उत्साह एवम् सामर्थ्य शक्ति से यदि सेवा होती रहे तो फिर वो दूसरी सेवा हो या न हो ऐसी यह सेवा आवश्यक है । परम आवश्यक है । और मैं तो यह कहता हूं कि एक साधक के लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है कि किसी वैष्णव के दुख में । कष्ट में । यह शरीर और यह समय किंचित रूप से भी काम में आ जाए ।लेकिन हम लोग प्राय इस विषय में इग्नोरिंग मूड में रहते हैं, और वैष्णवों को प्रसाद पवाने मे अधिक रूचि लेते हैं । जबकि इस प्रकार की सेवा के प्रति सदैव चेष्टा शील रहना चाहिए संत वैष्णव सद्गुरु कृपा से ही हमें यह अवसर मिला कि हम शरीर द्वारा मन द्वारा धन द्वारा किसी साधू वैष्णव भजन में आनंदी जन की सेवा कर पाए ।अतः हम चिंतन करें और प्राथमिकताओं को निश्चित करें ।

समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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