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"Paribhasha Kiski Manya" "परिभाषा किसकी मान्य "

Writer's picture: Dasabhas DrGiriraj NangiaDasabhas DrGiriraj Nangia

परिभाषा किसकी मान्य


एक वैष्णव यदि वैष्णव की परिभाषा जानना चाहता है तो उससे वैष्णव शास्त्र या वैष्णव आचार्य या वैष्णव गुरुजन से वैष्णव की परिभाषा जाननी चाहिए । समझनी चाहिए और माननी चाहिए ।परिभाषा तो वैष्णव की और समझे एक राजनीतिज्ञ से तो वह परिभाषा एक राजनीतिज्ञ के लिए ठीक हो सकती है एक वैष्णव के लिए नहीं ।महात्मा गांधी एक राजनीतिज्ञ थे एक समाज के नेता थे उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है । किसी भी वैष्णव संप्रदाय में महात्मा गांधी को आचार्य का दर्जा नहीं मिला है ।उन्होंने वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे यह व्याख्या दी है । जो उनके स्वरूप के अनुसार ठीक है । एक सामाजिक व्यक्ति को ऐसा ही करना है ।लेकिन वैष्णव आचार्यों ने वैष्णव की व्याख्या दी है जिसके मुख से कृष्ण नाम निकले वह वैष्णव

"Paribhasha Kiski Manya" "परिभाषा किसकी मान्य "
"Paribhasha Kiski Manya" "परिभाषा किसकी मान्य "

जो कृष्ण का भजन करे वह वैष्णव जो कृष्ण का स्मरण करे वो वैष्णवश्री चैतन्य चरितामृत या अन्य ग्रंथों में समाज सेवा करने वाले को वैष्णव की श्रेणी में नहीं रखा समाज सेवा करने वाले को भुक्ति मुक्ति कामी कहां गया और यह भी कहा गया कि भूक्ति मुक्ति कामी सकल अशांत ।भुक्ति माने भोग । यश की कामना को भी भोग कहा गया । वैष्णव को परम शांत कहां गया ।छिछले एवम् अधूरे ज्ञान के कारण हम कुछ भी बोलने लग जाते हैं । वैष्णव जगत में गांधी का कोई स्थान नहीं और राजनीति में वैष्णव का कोई काम नहीं ।अतः वैष्णव वही जो विष्णु के मूल स्वरुप भगवान श्री कृष्ण की उपासना करें भजन करें चिंतन करें स्मरण करें और विशेषकर कलयुग में नाम का आश्रय ग्रहण करें और जीवन को सफल बनाएं ।एक वैष्णव के लिए पीर पराई वाली व्याख्या बिल्कुल भी संगत नहीं पीर पराई वाला भाग परोपकार है और परोपकार पूण्य है भक्ति नही । और पीड़ा पाप है ।यदि आप अभी तक परोपकार और भक्ति का अंतर नहीं समझे है और नहीं जानते हैं तो आपको यह पोस्ट समझ नहीं आएगी । और आपके लिए अभी दिल्ली बहुत दूर है किसी अच्छे वैष्णव का संग करते हुए परोपकार और भक्ति के अंतर को समझिए । परोपकार पाप पुण्य एवम् जन्म पर जन्म देता है जबकि भक्ति श्री कृष्ण चरण की सेवा देती है

समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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