मुझे 15,000 लोग जानते हैं
कल एक मेरे मित्र मुझसे मिले और बोले दासाभास जबसे मैं सोशल मीडिया पर आया हूं मुझे हजारों लोग जानने लगे हैं । पहले मेरा कोई नाम भी नहीं जानता था । मुझे बड़ा अच्छा लगता है ।मैंने कहा यह बहुत अच्छी बात है लेकिन आप एक वैष्णव हैं दीक्षित हैं । भजन करते हैं आपके गुरुदेव हैं आपके ठाकुर हैं और आपसे पहले भी बहुत अच्छे-अच्छे वैष्णव हुए हैं ।वैष्णव का जो कार्यक्षेत्र है उसमें एक वैष्णव का यह उद्देश्य कदापि नहीं है कि लोग उसको जाने, अपितु इसका विरोध है ।
!["Mujhe 15000 log jaante hai" "मुझे 15000 लोग जानते हैं"](https://static.wixstatic.com/media/6114cd_c324f79923574be9895fdff1ad761edb~mv2.jpg/v1/fill/w_980,h_549,al_c,q_85,usm_0.66_1.00_0.01,enc_auto/6114cd_c324f79923574be9895fdff1ad761edb~mv2.jpg)
प्रतिष्ठा सूकरी विष्ठा । माधवेंद्र पुरी को स्वयं गोपीनाथ जी ने खीर चुरा कर दी वह रात ही रात उस शहर को छोड़कर भाग गए कि सुबह हल्ला मच जाएगा मेरी प्रतिष्ठा हो जाएगी । लोग मेरे पास आने जाने लगेंगे ।क्योंकि वैष्णव रीति में प्रतिष्ठा या अधिक लोग हमें जान रहे हैं । यह वैष्णवता की बाधक है ।यदि आप कोई सामाजिक व्यक्ति हैं तो यह आपके कार्यक्षेत्र में आता है कि आपको अधिक से अधिक लोग जाने यह आपकी सफलता मानी जाएगी | लेकिन यदि आप दीक्षित वैष्णव हैं तो यह आपकी असफलता और बाधा मानी जाएगी इस पर आप विचार करें ।प्रचार करना अच्छी बात है लेकिन सन्त, शास्त्र के आदेशानुसार सीमा में रहकर ।आचरण भी साथ-साथ होना है और उद्देश्य यह कि मुझे 15000 लोग जानने लगे हैं एक वैष्णव के लिए, विशुद्ध भक्त के लिए यह प्रसन्नता की नहीं दुख की बात है ।यद्यपि यह एक कठिन एवम दिल दिमाग मे सहज आने वाली बात नहीं लगती, लेकिन विशुद्ध भक्ति की तरफ बढ़ना है तो इसे दिमाग मे तो रखना ही होगा ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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