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"Kora Gyan or Kora Vairagya" "कोरा ज्ञान और कोरा वैराग्य"

Writer's picture: Dasabhas DrGiriraj NangiaDasabhas DrGiriraj Nangia

कोरा ज्ञान और कोरा वैराग्य

श्री चैतन्य चरितामृत में साफ-साफ लिखा है कि कोरा ज्ञान और कोरा वैराग्य कभी भी भक्ति का अंग नहीं है । अर्थात भक्ति नहीं है । कोरे ज्ञान से अर्थ है केवल ज्ञान कर लेना और उस पर आचरण ना करना जैसे सब जीवों में एक ही परमात्मा निवास करता है । यह बात समझ तो लेना लेकिन भाई से मुकदमा चल रहा है पिता से विचार नहीं मिलते हैं पत्नी से खटपट है बच्चा बात नहीं मानता है पड़ोसी से बोलचाल नहीं है तो यह कोरा ज्ञान है । यदि सब में परमात्मा है यह ज्ञान हो गया तो किसी से भी कोई गड़बड़ी नहीं होगी । सभी में परमात्मा का दर्शन होगा और परमात्मा का दर्शन होने पर अपने सेवक स्वरूप का ज्ञान होगा और हम सबके प्रति भगवत भाव रखेंगे ।यदि ऐसा नहीं है तो यह कोरा ज्ञान है और यह भक्ति नहीं है ।

"Kora Gyan or Kora Vairagya" "कोरा ज्ञान और कोरा वैराग्य"
"Kora Gyan or Kora Vairagya" "कोरा ज्ञान और कोरा वैराग्य"

इसी प्रकार कोरा वैराग्य हम लाल पीले कपड़े नहीं पहनते हैं केवल हमारे पास दो बहीरवास और दो वस्त्र हैं हम 20 साल से अन नहीं खाते हैं केवल दूध पीते हैं हम अपनी कुटिया में ही रहते हैं हम कहीं आते जाते नहीं हैं हम दिन में केवल दो ही लोगों से मिलते हैं हम अधिक लोगों से नहीं मिलते हैं हमारे पास कोई भी धन नहीं है हमारे पास कोई भी संग्रह नहीं है यह कोरा वैराग्य है । यह वैराग्य शास्त्र में मर्कट वैराग्य कहा गया है । मर्कट माने बंदर । बंदर के पास भी कोई झोपड़ी नहीं है । कोई धन आदि नहीं है कोई मिल जुल नहीं है । लेकिन बंदर का वैराग्य बंदर जैसा ही है ।यह सब वह चीजें हैं जो हम नहीं करते हैं, लेकिन यदि हम भक्ति नहीं करते हैं तो इन सब चीजों के नहीं करने का भी लाभ होगा कुछ भी लेकिन वह भक्ति नहीं है ।इन सब चीजों का विरोध नहीं है, उपेक्षा नहीं है लेकिन मुख्य बात यह है कि यह भक्ति नहीं है भक्ति है भगवान की सेवा, भगवान का चिंतन भगवान का भजन और भक्ति करते-करते जो ज्ञान मिलता जाए उस ज्ञान से उसको आचरण में लाते जाएं तो यह भक्ति सहित ज्ञान हो गया । भक्ति से यदि संसार और माया छूटती जाए तो यह भक्ति पूर्ण ज्ञान हो गया तो कोरा ज्ञान भक्ति नहीं है कुछ और हो सकता है उसकी उपेक्षा भी नहीं है लेकिन भक्ति नहीं है ।


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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1 comentário


Tessa Dudley
Tessa Dudley
23 de ago. de 2021

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