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"Chaar Dwaar" "चार द्वार"

Writer's picture: Dasabhas DrGiriraj NangiaDasabhas DrGiriraj Nangia

चार द्वार


कल कथा में आचार्य श्री श्रीवत्स जी गोस्वामी जी ने निकुंज हेतु अथवा श्री धाम वृंदावन के चिन्मय स्वरूप में प्रवेश हेतु चार मार्ग बताए

पहला है तृणादपि सुनीचेन

अर्थात अपने को तृण से भी अधिक छोटा मानना । हम जीवो के लिए शायद यह संभव नहीं ।

दूसरा बताया तरोरपि सहिष्णुना

अर्थात वृक्ष से भी अधिक सहनशील होना क्या आप हमें हो पाएंगे शायद नहीं

"Chaar Dwaar" "चार द्वार"
"Chaar Dwaar" "चार द्वार"

तीसरा बताया अमानीना मानदेन्

अर्थात आपको मान मिले या ना मिले दूसरे को मान् देते रहिए साथ ही जो मान के योग्य भी नहीं है उसको भी मान देते रहिए शायद यह भी हम जीवन भर ना कर पाए

चौथा है कीर्तनिय सदा हरि

भगवान श्रीहरि के नाम लीला का सदैव कीर्तन करते रहे । नाम गुण लीला को कहना और सुनना यही कीर्तन है ।शायद यह हम कर पाए । नाम का आश्रय गुणों का आश्रय, लीला का आश्रय, नामजप, नाम संकीर्तन हम कर पाएंगे और कलियुग केवल नाम अधारा ।अतः नाम का निष्ठापूर्वक आश्रय यदि ले लिया तो शायद हमें धाम में प्रवेश मिल जाए और निकुंज में प्रवेश मिल जाए ।


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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