"Bhagwat Kripa" "भगवत कृपा"
- Dasabhas DrGiriraj Nangia
- Jul 5, 2019
- 2 min read
भगवत कृपा
जब कृपा का एहसास होता है और वैष्णव हर क्षण जब उसकी कृपा की समीक्षा करता है तो आए हुए किसी भी दुख को छोटा ही मानता है और यह मानता है कि मुझे दुख तो बहुत बड़ा आना था लेकिन ईश्वर ने मेरी रक्षा करके इस दुख को छोटा कर दिया यह उसकी मेरे ऊपर कितनी कृपा है तत्तेनुकंपाम सुसमीक्षमाणो

इसी प्रकार जब सुख आता है तो छोटे से सुख को भी वह बहुत बड़ा करके मानता है और यह मानता है कि देखो मेरे ठाकुर ने मुझ पर कितनी कृपा करके मुझे यह सुख प्रदान किया
मेने तो कोई ऐसा कार्य नहीं किया मेने तो एसा कोई प्रयास नहीं किया कि मुझे यह सुख प्राप्त हो लेकिन मेरे ठाकुर की कृपा से उनकी अनुकंपा से अयोग्य होते हुए भी मुझे यह सुख प्राप्त हो गया यह एक शुद्ध वैष्णव का लक्षण है । यदि हम अपने ऊपर दृष्टि डालें तो हम सदैव इसके विपरीत रहते हैं छोटे से दुख को बहुत बड़ा मानते हैं और बहुत बड़े सुख को छोटा सा सुख मानते हैं और ऐसा मानते हैं कि यह दुख हमारे ऊपर ही आकर क्यों पड़ते हैं हमें सुख की प्राप्ति क्यों नहीं हो रही हैजबकि जो एक वैष्णव होता है वह हर स्थिति में उनकी कृपा की समीक्षा करता है . उनकी कृपा की समीक्षा करने से वह सदा ही दुख हो या सुख हो आनंद में रहता ह ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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