top of page
Writer's pictureDasabhas DrGiriraj Nangia

"Bhagwat Kripa" "भगवत कृपा"

भगवत कृपा

जब कृपा का एहसास होता है और वैष्णव हर क्षण जब उसकी कृपा की समीक्षा करता है तो आए हुए किसी भी दुख को छोटा ही मानता है और यह मानता है कि मुझे दुख तो बहुत बड़ा आना था लेकिन ईश्वर ने मेरी रक्षा करके इस दुख को छोटा कर दिया यह उसकी मेरे ऊपर कितनी कृपा है

तत्तेनुकंपाम सुसमीक्षमाणो

"Mujhe 15000 log jaante hai" "मुझे 15000 लोग जानते हैं"
"Bhagwat Kripa" "भगवत कृपा"

इसी प्रकार जब सुख आता है तो छोटे से सुख को भी वह बहुत बड़ा करके मानता है और यह मानता है कि देखो मेरे ठाकुर ने मुझ पर कितनी कृपा करके मुझे यह सुख प्रदान किया मेने तो कोई ऐसा कार्य नहीं किया मेने तो एसा कोई प्रयास नहीं किया कि मुझे यह सुख प्राप्त हो लेकिन मेरे ठाकुर की कृपा से उनकी अनुकंपा से अयोग्य होते हुए भी मुझे यह सुख प्राप्त हो गया यह एक शुद्ध वैष्णव का लक्षण है । यदि हम अपने ऊपर दृष्टि डालें तो हम सदैव इसके विपरीत रहते हैं छोटे से दुख को बहुत बड़ा मानते हैं और बहुत बड़े सुख को छोटा सा सुख मानते हैं और ऐसा मानते हैं कि यह दुख हमारे ऊपर ही आकर क्यों पड़ते हैं हमें सुख की प्राप्ति क्यों नहीं हो रही है

जबकि जो एक वैष्णव होता है वह हर स्थिति में उनकी कृपा की समीक्षा करता है . उनकी कृपा की समीक्षा करने से वह सदा ही दुख हो या सुख हो आनंद में रहता ह ।

समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

धन्यवाद!! www.shriharinam.com संतो एवं मंदिरो के दर्शन के लिये एक बार visit जरुर करें !! अपनी जिज्ञासाओ के समाधान के लिए www.shriharinam.com/contact-us पर क्लिक करे।

119 views0 comments

Comments


bottom of page