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"Apradh ya Upkar" "अपराध या उपकार"

अपराध या उपकार


एक होते हैं वास्तविक सन्त, एक होते हैं सन्त वेश धारी। ये वेशधारी एक सन्त नहीं होते हैं, ये सन्त की ड्रैस पहनकर वेश बनाते हैं । ठीक वैसे जैसे एक सामान्य व्यक्ति पुलिस की वर्दी पहन ले।

"Apradh ya Upkar" "अपराध या उपकार"
"Apradh ya Upkar" "अपराध या उपकार"

भी यदि वह वर्दी पहनता है तो वह कुछ न कुछ गोलमाल करना चाहता है । वह पुलिस नहीं ठग है। ऐसे ठग पुलिसवर्दी धारी को पीटने, पकड़वाने से अपराध नहीं होता है अपितु समाज को ठगी से बचाने का उपकार होता है । अतः साफ साफ ये पता चलने पर कि ये सन्त नहीं सन्तवेश धारी है- उसका तिरस्कार उपेक्षा करने पर कदापि अपराध का भय न खायें। ये उपकार ही है और कुछ नहीं तो ऐसे ठग से स्वयं हम तो किनारा कर ही सकते हैं । कोई अपराध नहीं होगा ।


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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