अपराध या उपकार
एक होते हैं वास्तविक सन्त, एक होते हैं सन्त वेश धारी। ये वेशधारी एक सन्त नहीं होते हैं, ये सन्त की ड्रैस पहनकर वेश बनाते हैं । ठीक वैसे जैसे एक सामान्य व्यक्ति पुलिस की वर्दी पहन ले।
!["Apradh ya Upkar" "अपराध या उपकार"](https://static.wixstatic.com/media/6114cd_ae88610ce4a74f1e8249fdade2d3e118~mv2.jpg/v1/fill/w_980,h_513,al_c,q_85,usm_0.66_1.00_0.01,enc_auto/6114cd_ae88610ce4a74f1e8249fdade2d3e118~mv2.jpg)
भी यदि वह वर्दी पहनता है तो वह कुछ न कुछ गोलमाल करना चाहता है । वह पुलिस नहीं ठग है। ऐसे ठग पुलिसवर्दी धारी को पीटने, पकड़वाने से अपराध नहीं होता है अपितु समाज को ठगी से बचाने का उपकार होता है । अतः साफ साफ ये पता चलने पर कि ये सन्त नहीं सन्तवेश धारी है- उसका तिरस्कार उपेक्षा करने पर कदापि अपराध का भय न खायें। ये उपकार ही है और कुछ नहीं तो ऐसे ठग से स्वयं हम तो किनारा कर ही सकते हैं । कोई अपराध नहीं होगा ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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